लुधियाना (अजय पाहवा ) निरंकारी मंडल लुधियाना द्वारा हर साल की तरह इस साल भी गाऊँ परताप सिंह वाला दाना मंडी मैं दसवां निरंकारी संत समागम करवाया गया जिसमें सैकड़ों की संख्या मैं श्रद्धालुओं ने महापुरुष संत जनो के नतमस्तक होकर अपनी हाजरी लगवाई। जिसमें सत्संग को सम्भोदित किया भ्रह्मऋषि महात्मा संत एच एस चावला जी ने। उन्होंने ने अपने मुखवचनो द्वारा कहा के प्यार के एहसास के बगैर प्यार का पेड़ कभी नहीं लग सकता भक्ति की बुनियाद केवल प्यार है( जिन प्रेम कियो तेहि रब पायो ) प्रभु परमेश्वर की प्राप्ति गुरु और गुरु की किरपा से ही प्राप्त की जा सकती है। इसलिए युगों युगों से संत महात्मा समझाते चले आ रहे हैं की इस प्रभु परमेश्वर को ही अपने जीवन का आधार बनाए। डूबना है या बचना है। किनारा उसको ही नसीब हुआ जो संत जनो की सत्संग मैं जुड़गया। मन को मंदिर बनाने के लिए गुरु द्वारा दिया भ्रह्म ज्ञान का प्रकाश होना बहुत जरुरी है। एक अजीब सी प्रभु की विडंबना है जब प्रभु मेहरबान होता है तभी गुरु मिलता है और जब गुरु मेहरबान होता है तभी प्रभु मिलता है। हमेशा ही संतों पीर पैगम्बरों द्वारा प्यार का ही पाठ पढ़ाया गया । और कहा के प्यार नम्रता और सत्कार की भावना अपने मनो मैं लेके आएं ।ये तभी संभव हो सकता है जब हम वैर विरोध निंदया चुगली त्याग के इंसानियत को अपना पहला धर्म मान लें। इस प्रभु से बिना नाता जोड़े इंसान सिर्फ एक मृत देह है । और इस मृत देह को कोई नहीं पहचानता । तभी कहा गया है है इंसान अपना मूल पहचान । जैसे एक स्पोर्ट्स मैं दौड़ लगाने वाला
अगर अपनी लेन से अलग दौड़ के पहले स्थान पे आता है तो उसको जीत के भी हार मिलती है।यदि इंसान बिना प्रभु को जाने ही खुद को सर्वश्रेष्ठ मानता है तो वो जीत के भी हार जाता है।ये जो इंसानी जनम मिला है संसार मैं रहते हुए सेवा सिमरन सत्संग भी करना है प्रभु परमात्मा को भी ज्ञात करना है ।महात्मा ने आई साधसंगत को भक्ति का सन्देश दिया और हमेशा भक्ति प्यार से जीवन जीने की प्रेरणा दी । इस मोके समागम के प्रभंदक एडवोकेट सुरिंदर शर्मा शाह जी तथा पूर्व सरपंच मल्कियत सिंह जी तथा शिवचरण थापर ,करण सिंह ,जसपाल सिंह ,बाबा अचर सिंह ,डॉक्टर जस्सी ,डॉक्टर लखविंदर ,आदि मौजूद थे।