बंगाल में वैसे तो करोड़ों-अरबों रुपये के कई घोटाले हुए हैं लेकिन राज्य सरकार के एक अधिकारी के घर से 20 करोड़ रुपये से अधिक की नकदी व जेवरात की बरामदगी की घटना पहली बार सामने आई है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि भ्रष्टाचार की जड़ें कितना गहरी हैं। यह बरामदगी बड़े वित्तीय लेन-देन वाले किसी विभाग के अधिकारी के घर से नहीं बल्कि एक नगरपालिका के सब-असिस्टेंट इंजीनियर के घर से हुई है। बाली नगरपालिका, जिसे अब हावड़ा नगर निगम से जोड़ा जा रहा है, उक्त नगरपालिका में भवन निर्माण के लिए नक्शा पास करने वाले सब-असिस्टेंट इंजीनियर प्रणब अधिकारी किस कदर भ्रष्टाचार में लिप्त थे, उसका एक नमूना मात्र है। उसने 20 करोड़ रुपये से अधिक की नकदी बैंक या फिर अन्य स्थानों पर नहीं रखी थी बल्कि अपने घर की दीवारों, टाइल्स के नीचे, बेड के बाक्स और बाथरूम में छिपा रखी थी। सवाल यहां यह उठ रहा है कि राज्य में शुक्रवार के पहले तक पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधी शाखा क्या कर रही थी? राज्य सरकार का निगरानी विभाग क्या कर रहा था? ऐसा तो नहीं है कि इंजीनियर ने एक ही दिन में रिश्वत के रूप में इतनी मोटी रकम ली होगी और रातों-रात उसे दीवारों में चुनवा दिया होगा। 20 करोड़ रुपये कुछ दिन या कुछ माह में उसने जमा नहीं किए होंगे। अगर एक नगरपालिका का भवन विभाग का इंजीनियर इतनी मोटी रकम रिश्वत के जरिये जुटा सकता है तो राज्य में 100 से अधिक नगरपालिकाएं व नगर निगम हैं। वहां क्या हो रहा होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है क्योंकि हम सभी को पता है कि नगर निगम हो या फिर नगरपालिका, एक छोटा सा काम भी बिना रिश्वत के नहीं होता। म्यूटेशन हो या फिर बिल्डिंग प्लान, ट्रेड लाइसेंस हो या फिर जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र लेने की प्रक्रिया। एक टेबल से फाइल दूसरे टेबल तक तभी पहुंचती है जब उस र रुपये का वजन दिया जाता है। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि नगर निगम व नगरपालिकाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार एक गिरफ्तारी से खत्म हो जाएगी? इसके लिए जरूरी है कि राज्य प्रशासन ऐसी कोई व्यवस्था विकसित करे, जोकि प्रणब अधिकारी जैसे इंजीनियरों व अन्य अधिकारियों के लिए सबक हो। प्रणब अधिकारी से पूछताछ के बाद पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधी शाखा ने बाली नगरपालिका के एक और इंजीनियर के घर की तलाशी ली, लेकिन वहां से नकदी नहीं मिले। ऐसा तो नहीं है कि प्रणब का मामला सामने आने के बाद से अन्य भ्रष्ट इंजीनियर व अधिकारी सचेत हो गए हैं। सरकार के लिए जरूरी अब यह है कि वह उन भवनों के खिलाफ भी कार्रवाई शुरू करें जिनका प्लान उक्त इंजीनियर ने पास किया है।