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राजनैतिक संरक्षण प्राप्त एसडीएम डा. किरण सिंह पर सत्ता का नशा हावी

पिहोवा (पुनित सांगर)अपने घमण्ड में चूर एसडीएम डा. किरण सिंह को किसी कानून की प्रवाह नही जब सैंया भये कोतवाल तब डर काहें का ये उक्ति पिहोवा की उपमंडल अधिकारी (ना.) डा. किरण सिंह पर बिल्कुल फिट बैठती है। राजनैतिक संरक्षण प्राप्त एसडीएम डा. किरण सिंह पर सत्ता का नशा हावी है। अपने घमण्ड में चूर एसडीएम डा. किरण सिंह को किसी कानून की प्रवाह नही है उल्टा कानून को ही ठेंगा दिखाती है। मामला एसडीएम डा. किरण सिंह को सरकार द्वारा अधिकृत एसडीएम की सरकारी गाडी का है। जिसका डाईवर मालेराम है। जिसको एसडीएम डा. किरण सिंह ने जबरन छुट्टी पर भेज दिया। गाडी डाईवर मालेराम पर एसडीएम डा. किरण सिंह का डर इतना हावी है कि उसने इसकी शिकायत किसी बडे अधिकारी को नही की और डरते हुए दबी जुबान में मीडियाकर्मियो से अपनी सारी आपबीती सुनाते हुए कहा कि कुरूक्षेत्र में एक मीटिंग के बाद एसडीएम ने अपने गनमैन से खाने के लिए गाडी से लंच बाक्स मंगवाया। डाईवर मालेराम और गनमैन भी खाने के लिए चले गये। लेकिन खाने के बीच में ही एसडीएम का फोन आ गया और मालेराम खाना छोडकर गाडी के पास पहुंच गया। मालेराम को देखकर एसडीएम डा. किरण सिंह आगबबूला हो गई और डाईवर मालेराम पर बरसते हुए कहा कि गाडी की चाबी दे वरना मैं बस से पिहोवा चली जाउगी। मालेराम की बार-बार मिन्नते करने के बाद भीएसडीएम का गुस्सा शांत नही हुआ और डाईवर मालेराम से जबान चाबी छीन ली। एसडीएम ने गाडी की चाबी गनमैन को दी तो मालेराम ने कहा कि मैडम इस गाडी को बिना परमिशन कोई ओर नही चला सकता है। इस पर एसडीएम मालेराम पर भडक गई और गनमैन के साथ गाडी लेकर पिहोवा आ गई। जबकि डाईवर मालेराम बस से पिहोवा आया। ऑफिस पहुंचने पर गनमैन के कहने पर गलती न होने के बावजूद भी मालेराम ने एसडीएम से माफी मांगी लेकिन एसडीएम ने मालेराम की एक ना सुनते हुए जबरन छुट्टी पर भेज दिया। दबी आवाज में मालेराम ने बताया कि लगभग दो महीने बाद उसकी रिटामैंट होने वाली है और उसे डर है कि कही एसडीएम उसका कोई नुक्सान ना कर दे।
एसडीएम की दबंगता का एक और नमूना अपनी प्राईवेट गाडी पर बिना परमिशन नीली बत्ती लगाई हुई है। ये है एसडीएम का रौब, न कोई परमिशन और ना कोई स्वीकृत स्टीकर (लोगो)। फिर भी एसडीएम ने प्राइवेट गाड़ी पर लगा रखी है नीली बत्ती। समाज में अपना रुतबा को बढ़ाने और उच्च अधिकारियों की तरह बत्ती लगाने की चाह में नियम, कानून और कायदे सब दरकिनार कर दिए। एसडीएम डा. किरण सिंह कई बार अपनी निजी कार एचआर 08 टी 0031 पर नीली बत्ती लगाकर दफ्तर पहुंचती है। जिसे प्राइवेट गाड़ी पर बत्ती लगाने की परमिशन ही नहीं है। जबकि नियमानुसार प्राइवेट गाड़ी पर बत्ती लगाने वाले अधिकारी को परिवहन विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है। जोकि गाड़ी पर बत्ती के साथ-साथ स्वीकृत स्टीकर (लोगो) जारी करता है। जिसे लगाना बेहद जरूरी होता है। उसके बिना गाड़ी का चालान किया जा सकता है। लेकिन एसडीएम डा. किरण सिंह की गाड़ी पर न तो ट्रांसपोर्ट विभाग का कोई स्वीकृत स्टीकर (लोगो) है और ना ही प्राइवेट गाड़ी पर बत्ती लगाने की परमिशन। ऐसे में अधिकारी ही नियमों की धज्जियां उड़ाने में लगे हैं। ऐसे में ट्रैफिक पुलिस की कार्यशैली पर भी कई सवाल खड़े होते हैं। आखिर उनके होते यह गाड़ी कैसे चल सकती है।
अधिकृत व्यक्ति ही लगा सकते हैं बत्तीलाल और नीली बत्ती को लेकर उच्चतम न्यायलय द्वारा सख्त निर्देश दिए गए हैं। लाल और नीली बत्ती लगाने वाले अधिकृत लोगों के लिए ट्रांसपोर्ट विभाग द्वारा स्टीकर जारी किया जाता है। जिसे वाहन के शीशे पर लगाया जाता है। स्टीकर पर सीरियल नम्बर, वैधता, अवधि, वाहन का नंबर, ट्रांसपोर्ट कमीशनर के हस्ताक्षर, अधिकारी का पद और जारी करने की तारीख अंकित होनी चाहिए।
एसडीएम डा. किरण सिंह का तीसरा कारनामा सरकारी गाडी एचआर 41सी 0300 पर चपरासी को डाईवर बनाया हुआ है नियम के अनुसार सरकारी गाडी को सिर्फ अधिकृत डाईवर चला सकता है अगर किसी कारण डाईवर छुट्टी पर जात है तो उसकी जगह कोई दुसरा अधिकृत डाईवर तैनात किया जात है। डाईवर मालेराम की जबरन छुट्टी के बाद एसडीएम ऑफिस में डीसी रेट पर कार्यरत चपरासी से अपनी सरकारी गाडी चलवा रही है। इस बारे जब चपरासी से पूछा गया तो उसने कुछ भी कहने से साफ मना कर दिया। इससे साफ पता चलता है कि चपरासी को एसडीएम का संरक्षण प्राप्त है और एसडीएम को किसी नियम व कानून की परवाह नही है। एसडीएम अपने मनमाने ढग़ से अपने ओहदे का दुरूपयोग कर रही है।

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