फरीदकोट ( शरणजीत ) भारत जैसे महान देश की महान हस्ती और बहुपक्षीय शखशियत के मालिक भारत के पूर्व राष्टरपति ज्ञानी जैल सिंह का जन्म 5 मई 1916 को पंजाब की उस समय की रियासत ज़िला फरीदकोट के गाँव संधवा में हुआ था आप ने अपने पिता भायी किशन सिंह की संतान में सब से छोटे थे।
आज हम जिस जग़ह पर है यह ज्ञानी जैल सिंह जी का जन्म स्थान उन का जद्दी घर है यहाँ पर 25 -12 -1999 को पंजाब सरकार की तरफ से राष्टर पति ज्ञानी जैल सिंह जी की याद में समारक बनाया गया था ता क ज्ञानी जी की याद हमेशा ताज़ा रहे। बचपन से ही ज्ञानी जी अध्याकमिक रुचियों के प्रेक्षक थे।ज्ञानी जी के दिल में धर्म प्रति विशवाश था ।और 15 साल की उम्र में ज्ञानी जी ने देश की ग़ुलामी से दुखी हो कर आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने का संकल्प किया चाहे ज्ञानी जी साधारण पेडूं नौजवान थे तो भी वह अपने अटल आत्मा में विश्वास और देश भक्ति के सदका आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और मेहनती संघर्षशील कार्य विलाप के रूप में उभरके सामने आए ;ज्ञानी जी 1933 में आजादी की लड़ाई दौरान जेल गए और इस के बाद उन का संमतवाद और विदेशी शाशन के ख़िलाफ़ लड़ाई को ओर तेज कर दिया सन 1938 में ज्ञानी जी प्रजा मंडल में शामिल हुए और उन्होंने फरीदकोट में कांग्रेस समंती की व्यवस्था की स्थापना की।
गियानी ज़ैल सिंह की देश भक्ति और भारत की आज़ादी की लड़ाई के लिए किये जा रहे संघर्ष को देखते उस समय पर के महाराजा फरीदकोट ने उन को एक झूठे केस में गिरफ़्तार कर लिया और उन को शारीरिक कष्ट देने के बाद पाँच सालों के लिए जेल भेज दिया गया उहनांने अनेका कष्ट बरदाश्त करे अपने सहमाण में उनतायी नहीं आने दी और फदीदकोट के राजा से खिमाँ मांगने से साफ़ न कर दी।
देश की आज़ादी के बाद 1949 में जब पहली बार पैपसू सरकार बनी तो ज्ञानी जी रैवीन्यू विभाग के मंत्री नियुक्त किये गए और दूसरी बार मंत्री बनने पर उन को सिंचाई और बी.ऐंड. आर महकमो का कार्य सौंपा गया।
संम 1955 में ज्ञानी जी को सर्व समंती के साथ पैपसू कांग्रेस का प्रबंधक चुन लिया गया और सन 1956 से 1962 तक वह राज सभा के मैंबर भी रहे सन 1966 में ज्ञानी जी को सर्व समिति के साथ कांग्रेस का प्रधान चुन लिया गया।सन 1972 में पंजाब विधान सभा मतदान में बहुमत हासिल करने से ज्ञानी जी ने पंजाब के मुख्य मंत्री के तौर पर पूरे पाँच साल ओहदा संभाला और फिर 1979 में लोग सभा मतदान में जीत हासिल की।उस समय प्रधान मंत्री श्रीमती इन्द्रा गांधी के मंत्री मंडल में गियानी जी ग्रह मंत्री बने रहे और 25 जुलाई 1982 को ज्ञानी जैल सिंह जी ने भारत के सब से ऊँचे ओहदे को प्राप्त करने का मान हासिल किया जब आप को भारत के लोकतंतर के सातवें रास्टरपती के तौर पर कसम ली तो पूरे पंजाब का सिर मान के साथ ऊँचा हो गया और ज्ञानी जी के कारजकाल दौरान विदेशों में भी भारत की शान में विस्तार हो गया और अपना कार्य पूरा करते हुए 1987 को इस ओहदे से सेवा मुक्त हुए।
बड़े दुःख की घड़ी थी जब 29 नवबंर 1994 को श्री अनन्दपुर साहब से चण्डीगढ़ जाते समय उन की गाड़ी एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गई और यह घटना बदकिसमती वाली साबित हुई जब हमारे महबूब रास्टरपती जी 25 दसबंर 1994 को सदा के लिए अलविदा कह गए।
वैसे तैं गाँव संधवा विकास के पक्ष से बहुत तरक्की कर चुका है परन्तु फिर भी इस गाँव में अभी बहुत कुछ होना बाकी है इस बारे जब संधवा गाँव के लोगों के साथ बात की गई तो उन्होंने कहा की गाँव में समस्याएँ तो बहुत हैं परन्तु उन्होंने कहा मेजर समस्या यह है कि उनके गाँव में बसें नहीं रुकतीं इसी के साथ ही उन्होंने कहा की ज्ञानी ज़ैल सिंह के नाम पर स्टेशन बना हुआ है परन्तु कोई प्लेट फार्म न होने करके कई हादसे घट चुके हैं उन्होंने सरकार को रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म बनाने की विनती की।
पूर्व रास्टरपती ज्ञानी ज़ैल सिंह जी के मनाए जा रहे 100 वें जन्म दिहाड़े को ले कर उनके सुपुत्र सर: जोगिन्द्र सिंह जी ने कहा कि 16 साल की उम्र में उन्होंने अपना राजसी जीवन शुरू किया था,उन्होंने बताया कि ज्ञानी जी ने मोमबत्ती पे हाथ रखकर सौंह भी खादी थी कि देश की ख़ातिर जीवांगा और देश की ख़ातिर मरूंगा।।इस के इलावा उन्होंने कहा कि ज्ञानी ज़ैल सिंह जी का जन्म दिन रास्टरपती भवन और फरीदकोट साथ साथ पंजाब के कई शहरों में मनाया जा रहा है।
ज्ञानी जी के जन्म दिन के मौके मनाए जा रहे अभिनंदन समारोह में उपस्थित सखशियतो को रास्टरपती ज्ञानी ज़ैल सिंह जी बारे जानकारी देते ज़िले के डिप्टी कमिशनर मालविन्दर सिंह जगी ने भी याद किया ।