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चिकित्सा पेशे पर आर्थिक पक्ष हावी, समाज के साथ सरकार और डाॅक्टर हैं जिम्मेदार।

राज्य राजस्थान हनुमानगढ़(प्रदीप पाल ) डाॅक्टर्स डे है। हर साल डाॅ. विधानचंद राय के जन्मदिन पर यह दिवस मनाया जाता है। पटना में जन्मे डाॅ. राय कुशल डाॅक्टर होने के साथ पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री भी बने। डाॅक्टर्स डे पर कई डाॅक्टरों से बातचीत की और यह जानने का प्रयास किया कि आखिर, वक्त के साथ चिकित्सा पेशे पर आर्थिक पक्ष हावी क्यों होता जा रहा है। पेश है खास रिपोर्ट। देश भर में मनाया जा रहा है डाॅक्टर्स डे। यह खास दिवस चिकित्सा पेशा से जुड़े लोगों को आत्ममंथन करने का मौका देता है कि क्या वे अपने पेशे के साथ न्याय कर पा रहे हैं ? क्योंकि जिस महान विभूति की जयंती पर यह दिवस मनाया जा रहा है उन्होंने चिकित्सा पेशे को सेवा की कसौटी पर ईमानदारी से खुद को परखा और प्रेरणास्त्रोत बन गए। वे हैं डाॅक्टर बिधानचंद राय। डाॅक्टर बिधानचंद राय का जन्म बिहार की राजधानी पटना में हुआ था। उन्होंने बंगाल और लंदन जाकर डाॅक्टरी की पढाई की। बाद में वे राजनीति में भी गए और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने। लेकिन राजनीति में शीर्ष पद पर होने के बावजूद उन्होंने मरीजों को देखना बंद नहीं किया। सादा जीवन उच्च विचार के हिमायती डाॅक्टर बिधानचंद राय डाॅक्टरी पेशे से जुड़े लोगों के आदर्श बने। महात्मा गांधी राजकीय जिला चिकित्सालय के पीएमओ डाॅ. एमपी शर्मा कहते हैं कि बिधानचंद राय की जयंती पर हमें आत्ममंथन करने का मौका मिलता है। वक्त के साथ डाॅक्टरों के प्रति समाज का नजरिया क्यों बदल रहा है ? यह सवाल वरिष्ठ शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डाॅक्टर रमाशंकर असोपा के लिए आसान था। उन्होनंे दो टूक कहा कि प्रतिस्पर्धा के दौर में यह सब हुआ है। वे मानते हैं आर्थिक दौर के कारण डाॅक्टरों और समाज के बीच संबंधों पर असर पड़ा है। आखिर, डाॅक्टरी पेशे पर आर्थिक पक्ष हावी क्यों है जबकि डाॅक्टर को भगवान का दर्जा प्राप्त है। इस सवाल पर डाॅक्टर एमपी शर्मा ने सफाई दी कि यह बात गलत है। उन्होंने कहा कि दौर ही आर्थिक है। जीविकोपार्जन के लिए पैसे की जरूरत है। घर और परिवार की जरूरतों को पूरा करना जरूरी है। लेकिन कारपोरेट जगत ने अस्पताल खोलकर इस बात को बढ़ावा दिया लेकिन भुगत रहा है डाॅक्टर वर्ग। समाज को वास्तविकता का अहसास होना चाहिए। राजकीय जिला अस्पताल में वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डाॅक्टर नजेंद्र सिंह शेखावत इस बात से व्यथित हैं कि समाज ने डाॅक्टरों को डाकू बताना शुरू कर दिया। वे पूछते है कि आखिर कौन सा वर्ग प्रोफेशनल नहीं है ? डाॅक्टर शेखावत कहते हैं कि कोई भी डाॅक्टर पेशे के साथ गलत नहीं करता। कुछ लोगों ने एक हौवा बना दिया और समाज ने उसे सच मान लिया। मरीजों और डाॅक्टरों के बीच विश्वास का माहौल विकसित क्यों नहीं हो रहा? डाॅक्टर धर्मेंद्र कहते हैं कि इसके लिए दोनों पक्षों को एक दूसरे की भावना समझनी होगी। जिस दिन इसके लिए ईमानदारीपूर्वक प्रयास होगा, सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। क्या, डाॅक्टरों को अब पहले जैसा सम्मान मिलता है ? इस सवाल का जवाब डाॅक्टर ना में देते हैं। लेकिन ब्लाक सीएमएचओ डाॅक्टर ज्योति धींगड़ा कहती हैं कि सम्मान देना और न देना व्यक्ति के स्वभार पर निर्भर है। वे मानती हैं कि डाॅक्टरों पर काम का दबाव है इसलिए वे मरीज को पर्याप्त समय नहीं दे पाते जिससे समस्याएं पैदा होना स्वभाविक है। हडडी रोग विशेषज्ञ और पूर्व पीएमओ डाॅक्टर एचपी रोहिल्ला भी स्वीकार करते हैं कि मरीजों और डाॅक्टरों के बीच सामंजस्य बनाने की जरूरत है। वे डाॅक्टरों पर काम का बोझ होने से इनकार नहीं करते। वहीं, मीडिया से उम्मीद करते हैं िकवे डाॅक्टरों की छवि में सुधार करने के लिए ईमानदार पहल करे। आखिर, दिन प्रतिनिधि मरीजों की देखभाल में कोताही की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं। डाॅक्टर अशोक कुमार कहते हैं कि ऐसा नहीं है। इसके लिए कुछ कारक जिम्मेदार हैं जिस पर चर्चा जरूरी है। वे कहते हैं कि लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं लेकिन सरकारी अस्पतालों में संसाधन वहीं के वहीं हैं। ऐसे में मुश्किलों का सामना तो करना होगा। डाॅक्टरों पर बड़ा आरोप है कि वे कमीशनखोरी के चलते जेनेरिक दवा की जगह ब्रांडेड दवा लिखने में दिलचस्पी दिखाते हैं। वरिष्ठ शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डाॅक्टर जेएस खोसा कहते हैं डाॅक्टरों पर आरोप लगाने से पहले सरकारी तंत्र की विसंगतियों पर चर्चा जरूरी है। मरीजों का कहना है कि डाॅक्टर जानबूझकर अधिक जांचें लिखते हैं जिससे उनका आर्थिक नुकसान हेाता है। लेकिन डाॅ. खोसा इस मसले पर स्थिति स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि जांच करवाना तो जरूरी है। आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डाॅक्टर एसएस गेट मानते हैं कि आर्थिक पक्ष हावी होने के कारण डाॅक्टरों पर पहले वाला सम्मान नहीं मिल रहा। लेकिन इसके लिए वे एक पक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहराते। डाॅक्टर गेट कहते हैं कि सरकार, डाॅक्टर और समाज को मिलकर इस तरफ ध्यान देना होगा। कुछ भी हो, कोई भी दिवस संबंधित पक्षों पर स्वस्थ बहस का अवसर देता है। डाॅक्टर्स डे के बहाने भी समाज को डाॅक्टरी पेशे के स्याह पक्ष पर चर्चा करते वक्त इसके उजले पक्ष पर चर्चा करनी चाहिए। क्योंकि डाॅक्टरों और मरीजों के बीच मधुर संबंध होना जरूरी है। इसी में सबकी भलाई है क्योकि सेहत से जुड़ी समस्याओं का समाधान तो सिर्फ और सिर्फ डाॅक्टरों के पास है जिनकी अनदेखी मुमकिन नहीं। उम्मीद है कि भविष्य में भरोसे की टूटती यह कड़ी मजबूत होगी। इसके लिए सरकार, समाज और डाॅक्टरों को ही पहल करने की जरूरत है।

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